(2) स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नये वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छूट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे
विज्ञापनों की भरमार हो गई है जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं।
अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है,
उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नयी पीढ़ी जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की
जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है।
जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज यह मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखावे
जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है ,बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा
शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाये और सुनाये जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर लचकाने लगे हैं।
ऐसे कार्यक्रम न शिव हैं, न समाज को शिव बनाने की शक्ति है इनमें। फिर जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है।
(1) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक होगा-
(a) पाश्चात्य उपभोक्तावाद और भरतीय दूरदर्शन
(b) पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का प्रचारक भारतीय दूरदर्शन
(c) भारतीय दूरदर्शन की अनर्थकारी भूमिका
(d) भारतीय जीवन-मूल्य और दूरदर्शन
उत्तर- (c)
(2) नयी आर्थिक व्यवस्था से भारतीय दूरदर्शन किस तरह प्रभावित है ?
(a) हिंसा, यौनाचार, बलात्कार, अपहरण आदि मानव की हीन वृत्तियों से सन्बन्धित कार्यक्रमों का बाहुल्य हो चला है और यह सब पाश्चात्य मीडिया का ही असर हैं।
(b) पाश्चात्य मीडिया के प्रभाव के चलते भारतीय दूरदर्शन नये और स्वतन्त्र जीवन-मूल्यों की स्थापना में पूरे जोर से लग गया है।
(c) पाश्चात्य मीडिया के अनुकरण पर भारतीय दूरदर्शन भी स्त्री-स्वातंन्त्रय का प्रचार करने लगा है।
(d) भारतीय दूरदर्शन के कार्यक्रमों पर पाश्चात्य जीवन शैली का गहरा असर दिखाई देने लगा है।
उत्तर- (a)
(3) नई आर्थिक नीति का प्रत्यक्ष प्रभाव क्या हो रहा है ?
(a) विकासशील देश अपनी राष्ट्रीय अस्मिता खोते जा रहे हैं।
(b) पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का विश्व के विकासशील देशों में व्यापक प्रचार हो रहा है।
(c) उपभोक्तावाद को खुला प्रोत्साहन मिल रहा है।
(d) विकासशील देश विकसित देशों की आर्थिक गुलामी में फँसते जा रहे हैं।
उत्तर- (b)
(4) अर्थनीति के नये वैश्विक वातावरण से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
(a) विकासशील देशों का विकसित देशों की आर्थिक गुलामी में फँसना
(b) अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सारे विश्व का एक सूत्र में जुड़ जाना
(c) आर्थिक नीति में राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाकर उसका उदारीकरण जिससे कोई देश अन्य किसी देश में व्यवसाय करने, उद्योग लगाने आदि आर्थिक
कार्यक्रमों में स्वतंत्र हो
(d) विकसित देशों के पूँजीपतियों को विकासशील देशों में पूँजी-निवेश की स्वतन्त्रता
उत्तर- (c)
(5) 'समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही'- इस वाक्य से लेखक का क्या तात्पर्य है ?
(a) भारतीय दूरदर्शन अपना दायित्व ईमानदारी से नहीं निभा रहा है।
(b) वह भारतीय समाज को कल्याण के मार्ग पर न चलाकर श्मशान के मार्ग पर ले जा रहा है।
(c) वह समाज को नए जीवन मूल्यों से अनुप्राणित करने के स्थान पर उसे मुर्दा बनाने में लगा है।
(d) भारतीय दूरदर्शन अपने 'सत्यम, शिवम, सुन्दरम' के आदर्श को भूल कर सामाजिक जीवन को विकृत कर रहा है।
उत्तर- (d)
(3) हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्रायः बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों
को पूरी तरह दोषी ठहरना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दुःख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही
समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते है और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते है, तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया।
यह कुछ प्राचीन रह गया। इसके समाज ने पुरातन परम्परा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा।
यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते, तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।
परन्तु अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित किया। उनके नए और ह्रष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की
भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुःखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना
और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ,
परन्तु जिसके भाग्य में नए राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था।
तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब अनिश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था,
परन्तु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतन्त्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिन्दू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परन्तु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ,
ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परन्तु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमे सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग थे,
प्रभावित हो गए थे। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में पश्चिमी तरीकों से हिन्दू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिन्दू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे।
इनमें से कुछ का उल्लेख मैं तुम्हें अपने इन पत्रों में कर चुका हूँ, परन्तु नया प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था।
इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान व्यक्ति और एक महान विद्वान जिसका नाम हम पहले ही सती प्रथा की समाप्ति के सम्बन्ध में ले चुके हैं।
वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था,
वे धर्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्मो समाज कहलाया।
(1) इस अवतरण से लेखक के विषय में यह पता चलता है कि
(a) भारत की समस्याओं के लिए वह विदेशी शासकों को दोषी ठहराता है।
(b) वह भारत पर ब्रिटिश प्रभाव का परीक्षण निष्पक्षता से करता है।
(c) लेखक ने बहुत से वर्ष इंग्लैण्ड में बिताये हैं और भारत की तरफ उसकी अरुचि विकसित हो गई है।
(d) वह हिन्दू धर्म का सच्चा अनुयायी है।
उत्तर- (b)
(2) लेखक कहता है कि पश्चिमी विचारों ने मार्ग प्रशस्त किया है-
(a) जनसमूह में निराशा का
(b) भारतीयों में अधिक निरक्षता का
(c) मध्यम वर्ग के लोगों की ओर से विद्रोह का
(d) हिन्दू धर्म में सुधार का
उत्तर- (d)
(3) यह अंग्रेजों द्वारा भारत को दिए गए महान लाभों में से एक नहीं है।
(a) यह राजनीतिक एकता की भावना लाया।
(b) अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों की तत्कालीन पश्चिमी विचारधारा के सम्पर्क में लायी।
(c) एक नए शिक्षित मध्यम वर्ग का जन्म हुआ।
(d) इसने रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास को बढ़ावा दिया।
उत्तर- (d)
(4) राजा राममोहन राय के व्यक्तित्व की पहचान की जाती थी-
(a) संस्कृत और अरबी की एक छात्रवृत्ति से
(b) विभिन्न धर्मों के समीकरण से
(c) पश्चिमी विचार के प्रकारों की एक निष्ठावान नकल से
(d) ईसाई धर्म के अधिकतम प्रभाव से
उत्तर- (b)
(4) संस्कृत और सभ्यता- ये दो शब्द हैं और उनके अर्थ भी अलगअलग हैं। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है।
संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज,
लम्बी-चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, ये सभ्यता की पहचान हैं और जिस देश में इनकी जितनी ही अधिकता है
उस देश को हम उतना ही सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सबसे कहीं बारीक़ चीज है। वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है; मकान नहीं,
मकान बनाने की रूचि है। संस्कृति धन नहीं, गुण है। संस्कृति ठाठ-बाट नहीं, विनय और विनम्रता है। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है,
लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ है। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर ये सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत हैं,
जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखलाई नहीं देती, वह बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है और वह हमारी हर पसंद, हर आदत में छिपी रहती है।
मकान बनाना सभ्यता का काम है, लेकिन हम मकान का कौन-सा नक्शा पसंद करते हैं- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।
आदमी के भीतर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर ये छः विकार प्रकृति के दिए हुए हैं। मगर ये विकार अगर बेरोक छोड़ दिए जायें,
तो आदमी इतना गिर जाए कि उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाये। इसलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है।
इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है।
जब दो देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते है तब उन दोनों की संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इसलिए संस्कृति की दृष्टि से
वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा-से-ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियाँ से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।
(1) 'सभ्यता' का अभिप्राय है-
(a) मानव को कलाकार बना देने वाली विशेषता
(b) मानव के भौतिक विकास का विधायक गुण
(c) मनुष्य के स्वाधीन चिंतन की गाथा
(d) युग-युग की ऐश्वर्यपूर्ण कहानी
उत्तर- (b)
(2) 'संस्कृति' का अभिप्राय है-
(a) हर युग में प्रासंगिक विशिष्टता
(b) विशिष्ट जीवन-दर्शन से सन्तुलित जीवन
(c) आनन्द मनाने का एक विशेष विधान
(d) मानव की आत्मिक उन्नति का संवर्धक आन्तरिक गुण
उत्तर- (d)
(3) संस्कृति सभ्यता से इस रूप में भी भिन्न है कि संस्कृति-
(a) सभ्यता की अपेक्षा स्थूल और विशद होती है।
(b) एक आदर्श विधान है और सभ्यता यथार्थ होती है।
(c) सभ्यता की अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म होती है।
(d) समन्वयमूलक है और सभ्यता नितान्त मौलिक होती है।
उत्तर- (c)
(4)संस्कृति का मूल स्वभाव है कि वह-
(a) मानव-मानव में भेदभाव नहीं रखती।
(b) मनुष्य की आत्मा में विश्वास रखती है।
(c) आदान-प्रदान से बढ़ती है।
(d) एक समुदाय की जीवन में ही जीवित रह सकती है।
उत्तर- (c)
(5) मानव की मानवीयता इसी बात में निहित है कि वह-
(a) अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रचार करे।
(b) अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के लिए कटिबद्ध रहे।
(c) सभ्यता की ऊँचाइयों को पाने का प्रयास करे।
(d) अपने मन से विधमान विकारों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करे।
उत्तर- (d)
(5) जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं है जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं, बल्कि फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं, बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं जिनका कंठ सूखा हुआ है, ओठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृतवाला तत्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चुका है, वह नहीं जो रेगिस्तान में कभी पड़ा ही नहीं है।
(1) यह गद्यांश किसका लिखा हुआ है ?
(a) रामधारी सिंह 'दिनकर'
(b) रामचन्द्र शुक्ल
(c) गुलाब राय
(d) बालमुकुन्द गुप्त
उत्तर- (a)
(2) जिन्दगी के असली मजे किनके लिए है ?
(a) जो आराम करते है
(b) जो परिश्रम करते है
(c) जो शहर में रहते हैं
(d) जो पैसे वाले है
उत्तर- (b)
((3) उपर्युक्त गद्यांश में किस बात के महत्व को बताया गया है ?
((a) प्रकृति
(b) जीवन
(c) श्रम
(d) भाग्य
उत्तर- (c)
((4) जो धूप में खूब सूख चुका है, से अभिप्राय है-
(a) कड़ा परिश्रम करना
(b ) धूप सेंकना
(c) बीमार होना
(d) रेगिस्तान में रहना
उत्तर- (a)
((5) 'अमृतवाला तत्व' का तात्पर्य है-
(a) जीवन का सार
(b) अमृत
(c) जीवन का रहस्य
(d) समुद्र से निकलता हुआ अमृत
उत्तर- (a)
(6) वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नही होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देशप्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृ भूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे ? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।
(1) देश-प्रेम का अंकुर विधमान है-
(a) सभी मानवों में
(b) सभी प्राणियों में
(c) सभी पक्षियों में
(d) सभी पशुओं में
उत्तर- (b)
(2) सच्चा देश-प्रेमी-
(a) वीर सपूतों की कहानियाँ सुनाता है।
(b) मातृभूमि का जयघोष करता है।
(c) परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरता है।
(d) अपनी भूमि देश के लिए दान कर देता है।
उत्तर- (c)
(3) देश-प्रेम का अभिप्राय है-
(a) देश के प्रति कोमल भावों का उदय
(b) अनथक प्रयत्न करके देश का निर्माण करना
(c) देशहित के लिए शत्रु से संघर्ष करना
(d) देश के प्रति व्यक्ति का स्वाभाविक ममत्व
उत्तर- (d)
(4) संध्या समय पक्षी अपने घोंसलों में वापस चले जाते हैं, क्योंकि-
(a) दिन-भर घूमकर वे थक जाते है।
(b) उन्हें रात को आराम करना है।
(c) जानवर भी अपने निवास-स्थान को चले जाते हैं।
(d) उन्हें अपना नीड़ प्यारा होता है।
उत्तर- (d)
(5) वही देश महान है जहाँ के लोग-
(a) शिक्षित और प्रशिक्षित हैं।
(b) बेरोजगार तथा निरूद्यमी नहीं है।
(c) कृषि और व्यापार से धनार्जन करते हैं।
(d) त्याग और उत्सर्ग में सदा आगे रहते हैं।
उत्तर- (d)